काशी मरणान्मुक्ति

मनोज ठक्कर और रश्मि छाजेड के द्वारा
भाषा : हिन्दी
बाध्यकारी: किताबचा
संस्करण: 3 संस्करण
विमोचन: 2011
ISBN-10: 8191092727
ISBN-13: 9788191092721
पृष्टों की संख्या : 512
प्रकाशक: शिव ॐ साई प्रकाशन
 
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शिवरात्रि

काशी

कर्मों का कर्षण करने वाली काशी, पौराणिक नगरी काशी, पंच सहस्र वर्षों से कुछ अधिक उम्र की नवयौवना काशी, बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर स्थित धर्म एवं आस्था का केंद्र काशी, शिव के विकराल तांडव से धरित्री का महानाश होने पर भी अमर अखंड काशी, महानिद्रा में सोए हुए जीवों को ज्ञान एवं मोक्ष देने वाली काशी, विश्वेश्वर और उत्तरवाहिनी गंगा के समान ही रहस्यमयी काशी, जीवात्मा की परमात्मा के लिए विनम्र प्रतिनिधि काशी, महेश्वर के मस्तक पर सुशोभित अर्द्धचंद्राकार को धरती पर प्रतिबिंबित करती काशी, संपूर्ण जगत के प्रति मैत्री भावना रखती काशी|

स्वर्ण और रत्नों के तेज सी प्रकाशित इस काशी को विभिन्न कालों में विभिन्न नामों से जाना गया जैसे कि - काशी, वाराणसी, बनारस, अविमुक्त, आनंदकानन, महाश्मशान, रुद्रवास, काशीका, तपस्थली, मुक्तिभूमि, श्री शिवपुरी, मोक्षदायिनी, इत्यादिI जैसी जिसकी आस्था, वैसा ही नाम धारण करती काशी, शिव के बारह ज्योतिर्लिंग के समान बारह नाम धारण कर ज्योति फैलाती काशी|

इस ज्योतिर्मय बनारस के आकर्षण से भला कौन अछूता रह सकता है| गूढ़ शक्तियों का रहस्य केंद्र बनी इस वाराणसी में भिन्न वर्ग, भाषा या जाति का कोई भी मनुष्य अगर पग धरता है, तो काशीवास की पुलक में वह यहीं का होकर रह जाता है| एक अज्ञात का आकर्षण मानव को यहाँ बसा देता है| विस्मरण की इस बेला में स्वयं से अपनी ही पहचान को थामता, जाति और समुदाय के आधार पर गंगा किनारे स्थित घाटों के पास गलियों में बसता मानव, बंगाली टोला या लाहौरी टोला इत्यादि को बसा बैठता है| क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, सभी का तो बसेरा है यह वाराणसी|

परम ऐश्वर्यमयी, अनदि-अनंत काशी विश्वनाथ का महिमा गान करते प्रत्येक काशीवासी में विचित्र मुखर भाव का भारीपन होता हैI वातावरण के भारीपन को हल्का करने के लिए चुहलपन की कला कोई काशीवासी से सीखे| भाँग के उपासक, भाँग की मदमस्ती में भले किसी का अच्छा करें न करें, बुरा तो कतई नहीं करते| मनो स्वयं सृष्टि के विधाता हों, ऐसे अर्द्धस्तिमित नयानों से मदमस्ती को छलका कर जब इक्काबाज़ी की दौड़ में सम्मिलित होते है, तो इक्काबाज़ इस दौड़ में अपने प्राणों की परवाह तक नहीं करता| ह्रदय के सुर-ताल युक्त संगीत में, नाव की दौड़ में अपनी जान की बाज़ी लगाना यहाँ आम है| चाहे कबूतरबाज़ी हो या फिर पतंगबाज़ी, भाँग की मस्ती में ढुलकते काशीवासी उसका पूर्ण आनंद लेते हैं|

होली के पर्व पर एक सनातन रंग से रँगता मुसलमान भी रंगों के संसार में ऐसे विचरता है, मनो स्वयं की जात को दूर कहीं छोड़ आया होI हिंदू-मुसल्मान की यह एकता बनारस में देखते ही बनती है, जब झुंड के झुंड पुरुष दिव्य निपटान के लिए ' बहरी अलंग' अर्थात गंगा के पार जा, खुले में ठिठोली करते अपने उदर को हल्का करते हैं|

जीवन की इस रंगरेली में नजाकत ऐसी कि सिर पर केशों का भार भी क्यों! सिर घुटाए एवं उसे तेल से चमकाते ये आनंदी जीव, आँखों में सुरमा लगाए एवं मुँह में पान और सुरती को घोलते, चौराहों पर चाय की चुस्कियाँ लेते छोटी-मोटी वरन वैश्विक समस्याओं पर ऐसे चर्चा करते हैं, मानो संपूर्ण विश्व इन्हीं चर्चाओं के बल पर चल रहा हो|

काशी मात्र काशी मरणान्मुक्ति के रंग को नहीं दर्शाती, यहाँ तो इंद्रधनुष के संपूर्ण रंग अपनी-अपनी आभा को निखरते हैंI फिर चाहे वह काशी की प्रातः का रंग हो या घाटों काI सारनाथ इस रंग में रँगा बुद्ध की वाणी को जगत में प्रसारित करता है और काशी विश्वनाथ संपूर्ण रंगों में आत्मसात कर अपने दिव्य प्रकाश से बनारस को देदीप्यमान बनाते हैंI और तो और राँड़, साँड़, सीढ़ी और संन्यासी भी अपने रंग बिखेरते काशी को सौंदर्य प्रदान करते हैं| तभी तो कहा जाता है -

"राँड़, साँड़, सीढ़ी, संन्यासी
इनसे बचिए तो घूमिये काशी,
काशी के वासी बड़े विश्वासी
हँसते-हँसते दे देते हैं फँसी|"

उपरोक्त श्री मनोज ठक्कर एवं रश्मि छाजेड द्वारा रचित “काशी मरणान्मुक्ति” पुस्तक से लिया गया है|

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