काशी मरणान्मुक्ति की आधिकारिक वेबसाइट - भगवान शिव का आध्यात्मिक उपन्यास
ईश्वर सृजित यह सृष्टि जितनी अनंत है, उतनी ही सूक्ष्म भी | अंतस् की इस सूक्ष्म सृष्टि में, माया के अनेक आवरणों के पीछे वह परम ज्योति प्रतिष्ठित है जिसके दर्शन करता मानव शिवत्व को प्राप्त हो जाता है | जो इस सत्य को जानता है, वह यह भी जानता है की जीवन मात्र सृष्टि की अनंतता से उसकी सूक्ष्मता की और यात्रा है और मृत्यु इस यात्रा की परम मंगलकारी पूर्णता | साधना के इसी क्षण मनुष्य निज-स्वभाव के गंतव्य को पा, स्व-हृदय में परमेश्वर की प्राणप्रतिष्ठा कर लेता है |
काशी के मणिकर्णिका महाश्मशान में मात्र तेरह वर्ष की आयु से चांडाल के रूप में नित्य शवों के जलाने वाले महामृणगंम (महा) ने चिताग्नि में अहर्निश शवों का हविष्य अर्पित करते हुए, इस मृत्यु-यज्ञ को ही अपनी तपस्या बना लिया | काशीवास ने महा को पंचतत्वों के रहस्यों का परिचय दिया, वहीं कबीर और तुलसी ने स्वपनों एवं भावों में आ उसे निर्गुण और सगुण का मार्ग दिखाया| किंतु अज्ञान के किसी क्षण माया के प्रपंच ने उसे काशी त्यागने पर विवश कर दिया |
मनुष्य भले ही ईश्वर को विस्मृत कर दे परंतु अंत:करण में बसा ईश्वर एक क्षण को भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता | युग-युग में जन्में अपने शिष्यों को शिव साक्षात् योगाचार्य का रूप धर, गुरु बन, मोक्ष-यात्रा की और प्रशस्त करतें है | ' काशी मरणान्मुक्ति ' में गुरु की महिमा की व्याख्या इन शब्दों में की गई है -
"गुरु के ज्ञान को मन की मुद्रा बना, गुरु के शब्द पर ध्यान करने वाला जीव ही काशीवास के रहस्य को ज्ञात कर इन मुक्ति के भेदों के ज्ञान को प्राप्त होता है |"
महा की यही यात्रा उसे साधना के उस चरम पर पहुँचा देती है जहाँ समस्त द्वैत विगलित हो जाते हें और यह श्मशान प्रहरी, महाश्मशानाधिपति काशी विश्वनाथ से एकाकार हो जाता है... यही काशी मरणान्मुक्ति है |